Source of Indian History भारतीय इतिहास के स्रोत इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि इतिहास बीता हुआ कल है, और इसी बीते हुए कल का विश्लेषण कर इसकी खामियों को दूर कर सफलता पाई जा सकती है।इतिहास एक विषय के रूप में तो महत्वपूर्ण है ही साथ ही साथ इतिहास को जानकर समझ कर यदि सही विश्लेषण कर कोई कार्य किया जाए तो कार्य की सफलता शत-प्रतिशत सुनिश्चित हो सकती।
भारतीय इतिहास के स्रोत (Source of Indian History) :-
भारतीय इतिहास के विषय में हमें मुख्यत: चार स्रोतों से जानकारी मिलती है। ये स्रोत निम्नलिखित है।
1 • धार्मिक ग्रंथ
2 • ऐतिहासिक ग्रंथ एवं समसामयिक ग्रंथ
3 • विदेशियों के विवरण और
4 • पुरातात्विक साक्ष्य
1• धार्मिक ग्रंथ
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भारत एक धार्मिक और आध्यात्मिक देश रहा है। प्राचीन काल से ही धर्मों की आधारशिला रखी गयी है। पुरातन काल से यहाँ तीन धार्मिक धाराऐं प्रवाहित हुई है।
• वैदिक धर्म ग्रंथ
• बौद्धिक धर्म ग्रंथ और
• जैन धर्म धर्म ग्रंथ
वैदिक धर्म ग्रंथ
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Source of Indian History के रूप में भारत का सर्वाधिक प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है। वेद का शाब्दिक अर्थ “ज्ञान” अर्थात् पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान से है। वेद के संकलनकर्ता महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। वेद बसुद्धैव कुटुम्बकम (पुरा विश्व एक परिवार है) का संदेश भी देता है।
वेद चार प्रकार के हैं:-
• ऋग्वेद
• सामवेद
• यजुर्वेद
• अथर्ववेद
• ऋग्वेद
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चारो वेदों में सर्वाधिक प्राचीन वेद ऋग्वेद है। ऋग्वेद अर्थात् ऐसा ज्ञान जो ऋचाओं में बद्ध हो। इस वेद से आर्यों के राजनीतिक प्रणाली एवं उनके इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
इस वेद में कुल दस मण्डल एवं 1028 सूक्त तथा 10,462 ऋचाएँ हैं। इस वेद की रचना विश्वामित्र ने की है। इस वेद के ऋचाओं का गायन करने वाले ऋषि को “होतृ” कहा जाता है। ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में प्रसिद्ध “गायत्री मंत्र” का उल्लेख है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल की हस्तलिखित ऋचाओं को “खिल” कहा जाता है।
वामनावतार के तीन पग का स्रोत ऋग्वेद में है। ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं में वर्णन मिलता है।
• सामवेद
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साम का अर्थ गान से है। इस वेद में संकलित मत्रों को देवताओं की स्तुति में गाया जाता था। इस वेद में 1549 ऋचाएँ है, जो 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से ली गयी है। इन ऋचाओं का गायन करने वाले “उद्गाता” कहे जाते हैं।
इस वेद को भारतीय संगीत के जनक के रूप में देखा जाता है।
• यजुर्वेद
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यजुर्वेद यजुष् शब्द से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ “यज्ञ” होता है। महर्षि पतंजलि द्वारा उल्लेखित 101 शाखाओं में अब शेष पांच ही है। इस वेद में अनेक प्रकार के यज्ञ को संपन्न कराने की विधियों का उल्लेख किया गया है। यजुर्वेद में मंत्रों के उच्चारण करने वाले ब्राह्मण को “अध्वर्यु” कहा जाता है।
यह एक ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनों विधाओं में है। यजुर्वेद पांच शाखाओं में विभक्त है:- काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैतरीय और वाजसनेयी।
• अथर्ववेद
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अथर्ववेद में औषधि प्रयोग, रोग निवारण, जन्त्र-मन्त्र, टोना-टोटका, विवाह, प्रेम, अंधविश्वास और ब्रह्मज्ञान का उल्लेख किया गया है। इस वेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की है। इस वेद में कुल 40 अध्याय और 711 सूक्त है।
अथर्ववेद में कन्याओं के जन्म की निंदा की गयी है।
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महत्वपूर्ण तथ्य:-
• प्राचीन इतिहास में वैदिक साहित्य के रूप में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है।
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• सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है जबकि सबसे बाद का वेद अथर्ववेद वेद अथर्ववेद है।
• आरण्यक
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वनों में पढ़ा जाने वाला दार्शनिक एवं रहस्यमयी ग्रंथों को आरण्यक कहा जाता है।
इनकी कुल संख्या सात है:- ऐतरेय, शांखायन, तैत्तरीय, मैत्रायणी, माध्यन्दिन बृहदारण्यक, तल्वार और जैमनी।
अत: हम कह सकते हैं कि source of Indian History के रूप में आरण्यक महत्वपूर्ण है।
• उपनिषद
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उपनिषद का शाब्दिक अर्थ समीप बैठना है। यह वह रहस्यमयी ज्ञान है जिसे बीना गुरू के सहयोग के संभव नहीं है। ब्रह्मा विषयक होने के कारण इसे ब्रह्मविद्या भी कहा जाता है।
उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग होने के कारण इसे वेदांत भी कहा जाता है। भारत का सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय वाक्य “सत्यमेव जयते” मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
• वेदों को सही प्रकार से समझने के लिए छह वेदांग की रचना की गयी है:-शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरूक्त और छंद।
• स्मृतियाँ
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• मनु स्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन है।
• मनु स्मृति से प्राचीन भारत के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक जानकारी मिलती है।
• नारद स्मृति से गुप्त वंश के बारे में जानकारी मिलती है।
• रामायण
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• रचनाकार बाल्मीकि ऋषि।
• रचना का समय पहली एवं दुसरी शताब्दी।
• रामायण में शुरूआत में 12,000 तथा वर्तमान में लगभग 24,000 श्लोक है।
• बाल्मीकि रामायण सात खण्डों में बांटा गया है:- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड एवं उत्तरकाण्ड।
• रामायण में उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक स्थित का पता चलता है।
• रामकथा पर आधारित ग्रंथों में भारत से बाहर सर्वप्रथम अनुवाद चीन में किया गया।
• भुशुण्डि रामायण को आदि रामायण के रूप में जाना जाता है।
• महाभारत
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• रचनाकार महर्षि वेदव्यास।
• प्रारंभ में 24,000 श्लोक था।
• वर्तमान में लगभग 1,00,000 श्लोक है।
• महाभारत को जय संहिता भी कहा जाता है।
• महाभारत को 18 पर्वों में बाटा गया है।
• महाभारत में उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक स्थित का पता चलता है।
• पुराण
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• Source of Indian History के लिए पुराण महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
• अधिकांशत: पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गये हैं।
• रचना का समय 5वीं से 4थी शताब्दी ई•पू• में।
• पुराणों की संख्या 18 है।
• ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु, भागवत्, नारदीय, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरूड़ और ब्रह्माण्ड पुराण।
• इन सब पुराणों मे से विष्णु, मत्स्य, वायु तथा भागवत पुराण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
• 18 पुराणों में सबसे प्राचीन और प्रामाणिक मत्स्य पुराण है।
• मत्स्य पुराण से सातवाहन वंश के बारे में,
• विष्णु पुराण से मौर्य वंश एवं गुप्त वंश के बारे में,
• वायु पुराण से शुंग और गुप्त वंश के बारे में विशेष रूप से जानकारी मिलती है।
• बौद्ध धर्म ग्रंथ
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• महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद आयोजित होने वाली संगीतियों में संकलित किए गए त्रिपिटक संभवत भारत के सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ है।
• विद्वानों के अनुसार त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ “टोकरी” है।
• त्रिपिटकों की संख्या तीन है:- सुत्तपिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक।
• सुत्त पिटक में भगवान बुद्ध के धार्मिक विचारों और उपदेशों का संग्रह है। यह पिटकों में सबसे बड़ा और श्रेष्ठ माना जाता है।
• विनय पिटक में मठ निवासियों के अनुशासन संबंधी नियम दिए गए हैं।
• अभीधम्म पिटक में बौद्ध मतों की दार्शनिक व्याख्या की गई है।
• पिटकों के अलावा मिलिन्दपन्हो, दीपवंश, और महावंश भी बौद्ध साहित्य हैं।
• बौद्ध साहित्य की रचना मुख्यत: पाली भाषा में की गई है।
• जातक में भगवान बुद्ध के पूर्वजन्म की कहनी का वर्णन मिलता है।
• जैन धर्म ग्रंथ
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• प्राचीन स्रोतों के रुप में जैन साहित्य बौद्ध साहित्य के समान ही महत्वपूर्ण है।
• जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास “कल्पसूत्र” से ज्ञात होता है।
• इस साहित्य की भाषा संकृत और प्राकृत है।
• जैन साहित्य को “आगम” कहा जाता है।
• ऐसा माना जाता है कि इन आगम ग्रंथों की रचना भगवान महावीर स्वामी के मृत्यु पश्चात की गयी है।
• आगम ग्रंथों की कुल संख्या
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2• एतिहासिक एवं समसामयिक ग्रंथ
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Source of Indian History के लिए एतिहासिक एवं समसामयिक ग्रंथ महत्वपूर्ण है। प्रकार के साहित्यक स्रोत को धर्मेतर साहित्य भी कहा जाता है। इन साहित्य ग्रंथों से तत्कालीन भारतीय समाज के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बातों को जानने समझने में मदद मिलती है।
• अर्थशास्त्र:-
आचार्य चाणक्य (कोटिल्य या विष्णु गुप्त) द्वारा रचित यह ग्रंथ संभवतः भारत का प्रथम राजनीतिक साहित्य माना जाता है।
• इस ग्रंथ में 600 श्लोक हैं।
• मौर्यकालीन इतिहास को जानने समझने में मदद मिलती है।
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• मुद्राराक्षस:-
• रचनाकार विशाखदत्त
• चन्द्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु चाणक्य के बारे में तथा नंद वंश के पतन और मौर्य वंश की स्थापना के बारे में वर्णन है।
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• पाणिनी रचित अष्टध्यायी और महर्षि पतंजलि द्वारा रचित महाभाष्य मुलत: व्याकरण है पर इन ग्रंथों से भी कहीं-कही राजा-महराजाओं के बारे में वर्णन मिलता है।
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• “गार्गी संहिता” से यूनानी आक्रमणकारियों का वर्णन मिलता है।
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• “मालविकाग्निमित्र” का रचना कालिदास ने की थी ।
• इस ग्रंथ से पुष्यमित्र शुंग और उसके पुत्र अग्निमित्र के समय होने वाले राजनीतिक घटनाक्रम साथ ही साथ यवनों के संघर्ष का भी विवरण मिलता है।
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• “हर्षचरित” की रचना सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में सम्राट हर्ष वर्धन के राज्य कवि बाणभट्ट ने की थी। इस ग्रंथ से राजा हर्ष के समय भारत के इतिहास का वर्णन मिलता है।
सम्राट हर्ष वर्धन अंतिम हिन्दू सम्राट के रूप भी जाने जाते हैं।
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• “मंजुश्रीमूलकल्प” ग्रंथ से आठवीं शताब्दी के मध्य के भारतीय इतिहास की जानकारी मिलती है।
यह ग्रंथ बौद्ध धर्म की महायान शाखा से भी संबंधित है।
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• शुद्रक द्वारा रचित “मृच्छकटिकम्” से गुप्तकालीन सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था के बारे में जानकारी मिलती है।
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• “नवसाहसांकचरित” को संस्कृत साहित्य का प्रथम एतिहासिक महाकाव्य के रूप में जाना जाता है।
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• “राजतरंगिणी” के रचनाकार कल्हण ने की है।
• कश्मीर के तत्कालिक इतिहास पर आधारित है।
• इस ग्रंथ का और भी महत्व इसलिए है कि कल्हण ने सबसे पहली बार संस्कृत साहित्य को क्रमबद्ध रूप से लिखने का प्रयास किया था।
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3• विदेशियों का विवरण
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प्राचीन काल से ही भारत से ही भारत विदेशी यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां पर यूनानी रोमन, चीनी यात्री अरबी लेखक और विभिन्न क्षेत्रों से समय-समय पर यात्री आते रहे हैं। जिन्होंने भारतीय इतिहास यहां की संस्कृति और सभ्यता के बारे में वर्णन किया है। इस लिए Source of Indian History हेतु विदेशियों का विवरण काफी महत्वपूर्ण है।
• हेरोडोटस :-
इसे इतिहास का जनक कहते हैं। इन्होंने पांचवी शताब्दी शताब्दी ईसा पूर्व में “हिस्टोरिका” नामक पुस्तक की रचना की जिसमें तत्कालीन भारत और फारस के बीच संबंधों का उल्लेख किया गया है।
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• मेगस्थनीज:-
सेल्यूकस का राजदूत था।
• ये चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में लगभग 14 वर्ष तक रहे।
• इन्होंने “इंडिका” नामक ग्रंथ की रचना भी की जिसमें तत्कालीन मौर्य वंश के सभ्यता और संस्कृति का वर्णन किया है।
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• इसके अलावा टालेमी रचित भूगोल, प्लिनी का नेचुरल हिस्टोरिका से भी भारतीय इतिहास का वर्णन मिलता है।
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• टेसियस:- ईरान का राज वैद्य था। इसने कहानियों के माध्यम से भारत के बारे में विवरण प्रस्तुत किया है।
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• फाह्यान:-
चीनी यात्री फाह्यान चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय के समय भारत आया था। उसने अपने लेख में भारत के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला है। उसकी रचना बौद्ध धर्म पर लिखी गयी है।
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• ह्वेनसांग:-
Source of Indian History के रूप में चीनी यात्री ह्ववेनसांग का विवरण है। ह्वेनसांग कन्नौज के राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया। भारत में 15 वर्ष रूकने के बाद 645 ई• में वह चीन लौट लौट लौट गया।
उसने 6 वर्षों वर्षों तक बिहार के विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। ह्वेनसांग की यात्रा का वर्णन “सी-यू-की” नामक पुस्तक में वर्णित है, जिसमें लगभग 138 देशों की यात्रा यात्रा का वर्णन मिलता है।
ह्वेनसांग जिस समय नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहा था उस समय विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।
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• इत्सिंग:-
चीनी यात्री इत्सिंग एक बौद्ध भिक्षु था। वह इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप समूह के रास्ते 675 ईस्वी में भारत आया और करीब 10 वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहकर आचार्यों से संस्कृत एवं बौद्ध धर्म के ग्रंथों को पड़ा।
इत्सिंग ने प्रसिद्ध ग्रंथ “भारत तथा मलय दीप पुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण” की रचना की है जिसमें तत्कालीन भारत के नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय पर प्रकाश डाला गया है।
• अलबरूनी:-
अरब यात्री अलबरूनी महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। इसे मोहम्मद गजनवी ने अपना राज ज्योतिषी बनाया था। उनकी रचना “किताब उल हिंद” या “तहकीक-ए-हिंद” जिसे भारत की खोज भी कहा जाता है।
इतिहासकारों के लिए यह ग्रंथ अमूल्य धरोहर है। इस पुस्तक से तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त धर्म, रीति-रिवाज के साथ- साथ खगोल विज्ञान और मापन यंत्र यंत्र इत्यादि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
• सुलेमान:-
अरबी यात्री सुलेमान 9 वीं शताब्दी में आया उसने प्रतिहार एवं पाल शासकों के समय का सामाजिक दशा का वर्णन किया है।
• अल मसूदी:-
अरब के बगदाद का रहने वाला वाला अल मसूदी 915 – 16 के बीच भारत आया, उसने यहां के राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों के विषय में जानकारी दिया है।
• इब्नबतूता:-
अरब का प्रसिद्ध विद्वान और लेखक इब्नबतूता 14 वीं शताब्दी में भारत आया। 1333 ई• में दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने उसकी विद्वता पर प्रसन्न होकर उसे दिल्ली का काजी अर्थात न्यायाधीश घोषित किया।
इब्नबतूता का यात्रा विवरण “रेह्नला” नामक पुस्तक में उल्लेखित है जिसमें चौदहवीं शताब्दी मैं भारतीय समाज की स्थितियों का वर्णन मिलता है।
उपरोक्त विदेशी यात्रियों के विवरण के अलावा कुछ फारसी रचनाकारों के विवरण भी महत्वपूर्ण हैं।
• तारानाथ:- तिब्बती लेखक
• मार्कोपोलो:- 13 वीं शताब्दी में पांड्यदेश की यात्रा पर आया।
• फिरदौसी:- रचना शाहनामा, चाचनामा आदि
• अबुल फजल:- अकबरनामा
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4• पुरातात्विक साक्ष्य
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Source of Indian History में पुरातात्विक साक्ष्यों के अंतर्गत मुख्य रूप से अभिलेख, सिक्के, मूर्तियां, स्मारक, भवन और चित्रकला आदि आते हैं। जिनसे इतिहास को जानने समझने में मदद मिलती है।
• अभिलेख:-
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इतिहास को जानने में पुरातात्विक सामग्री में अभिलेखों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशत स्तंभों, शिलालेखों, मुद्राओं, ताम्रपत्रों, मूर्तियों तथा गुहाओं में खुदाई से मिले हैं।
• सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के “बोधज कोई” नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। जो 1400 ई• पूर्व का है। इन अभिलेखों में वैदिक देवता मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्व का वर्णन मिलता है।
• सर्वप्रथम भारतवर्ष का उल्लेख हाथी गुंफा अभिलेख से मिलता है।
• हैदराबाद के मास्की अभिलेख में अशोक का वर्णन है। अशोक के अभिलेख ब्राह्री, खरोष्ठी और आरमेईक की लिपि में लिखे हुए मिलते हैं।
• खारवेल का हाथी गुफा अभिलेख प्रसिद्ध है।
• समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तंभ लेख प्रसिद्ध है।
इस प्रकार के बहुत सारे अभिलेखों से हमें प्राचीन इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
• सति प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य “एरण अभिलेख” (जो भानु गुप्त के शासनकाल का है) से प्राप्त होती है।
• भारत पर हूणों के आक्रमण की जानकारी हमें “भीतरी स्तंभ” लेख से प्राप्त होता है।
• भीतरी एवं जूनागढ़ अभिलेख स्कंद गुप्त से संबंधित है।
• अभिलेखों का अध्ययन “ईपी ग्राफी” के रूप में जाना जाता है।
• मुद्राएँ:-
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Source of Indian History के लिए मुद्राऐं महत्वपूर्ण है। प्राचीन भारत में मुद्राएं मिट्टी और धातु की बनी होती थी, जिस पर प्रायः राजा महाराजाओं, शासकों, सामंतों के नाम एवं चित्र छपे होते थे।
• मुख्यतः मुद्राओं से हमें 206 ई• पूर्व से लेकर 300 ई• तक प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
• वैसे सिक्के और मुद्राएं जिन पर लेख नहीं होते थे जिनपर केवल चिन्ह मात्र थे उन्हें “आहत सिक्के” (Punch Marked) कहा जाता था।
• सबसे पहली बार भारत में शासकों द्वारा सिखों पर लेख एवं तिथियां उत्कीर्ण करने का कार्य यूनानी शासकों ने किया था।
• सबसे अधिक सिक्के उत्तर मौर्य काल के हैं, जो मुख्यतः सीसे, तांबे कांसे चांदी और सोने के होते थे।
• कुषाण शासन के समय सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के प्रचलन में थे, परंतु सबसे अधिक सोने के सिक्के गुप्त काल में जारी किए गए थे।
• समुद्रगुप्त के कुछ सिक्कों पर “यूप” कुछ पर “अश्वमेघ यज्ञ” और कुछ पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।
• समुद्रगुप्त के सिक्कों पर पर बिना बजाते हुए महिला का चित्र होने के कारण उसके संगीत प्रेमी होने का सबूत भी मिलता है।
• स्मारक एवं भवन:-
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भारतीय स्थापत्यकारों, वास्तुकारों और चित्रकारों ने प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनके द्वारा भवनों, इमारतों, मंदिरों और कलाओं से महत्वपूर्ण इतिहास के साक्ष्य मिले हैं।
• सिन्धु नदी घाटी में खुदाई से प्राप्त हड़प्पा सभ्यता।
• पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त मौर्य के समय लकड़ी के बने राज प्रसाद का ध्वंसावशेष।
• कौशांबी की खुदाई से महाराज उदयन का राज प्रसाद ।
• खजुराहो और भुवनेश्वर स्थित मंदिरों में की गई वास्तुकला भारतीय इतिहास की अनुपम धरोहर है।
• उस समय के मंदिर निर्माण की प्रचलित शैलियों में उत्तर भारत की नागर शैली तथा दक्षिण भारत में प्रचलित द्रविड़ शैली के मंदिर और साथ ही कुछ ऐसे मंदिर जो नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों के इस्तेमाल से बनी बेसर शैली के मंदिर प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं।
• मुर्तियाँ:-
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प्राचीन इतिहास के स्रोत में मुर्तियाँ महत्वपूर्ण है। कुषाण गुप्त एवं अन्य शासनकाल के समय होने वाले मूर्तियों के निर्माण तथा इससे जुड़े धार्मिक भावनाएं इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत है
• भरहुत, बोधगया, सांची, अमरावती जैसे देश के कई भागों में मिली मूर्तियां, मूर्तिकला का एक अनूठा नमूना प्रस्तुत करने साथ ही इतिहास को जानने में भी मदद मिलती है।
सांची स्तुप, मध्यप्रदेश
• चित्रकला:-
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अजंता – एलोरा जैसे कई चित्रकला तत्कालीन भारतीय समाज के सास्कृतिक और धार्मिक इतिहास की जानकारी देता है।
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